@article{Anusandhan-Hindi-IntlJournal, author = {अलका देवी and सचिन कुमार and ऋतु त्यागी}, title = { मनोरोगके निवारण में क्रियायोग की भूमिका}, journal = {Anusanadhan: A Multidisciplinary International Journal (In Hindi)}, volume = {5}, number = {3&4}, year = {2021}, keywords = {}, abstract = {योग विद्या सृष्टि के प्रारम्भ से ही मानव कल्याण हेतु उपयोगी होती रही है। योग के द्वारा हमारे ऋषि मुनियों ने अध्यात्म जगत में उन्नति के शिखर को छुंआ है और मानव के बहुत से अनसुलझे रहस्यों को उजागर किया है। आध्यात्मिक उन्नति के साथ-साथ योग विद्या का मनुष्य के शरीर और मन के विकारों के निराकरण में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। आधुनिक युग में भी योग के अभ्यास से मनुष्य जीवन के सभी द्वन्द्वों से छुटकारा पा सकता है। महर्षि पतंजलि आदि ऋषियोें ने मनुष्य को जीवन की समस्याओं से विचलित न होते हुए किस तरह से उनका समाधान किया जाये इसका ज्ञान सहज ही उपलब्ध करा दिया है। महर्षि पतंजलि द्वारा रचित योग विद्या के अद्वितीय ग्रन्थ पतंजलि योग सूत्र में मानव जाति के कल्यणार्थ जो ज्ञान दिया है उसको उन्होंने सूत्रों की एक माला में मोतियों की तरह गंुथा है। प्रत्येक सूत्र अपने आप में सम्पूर्ण योग विद्या को समाये हुए है। इन्ही मोतियों मे से एक मोती ‘‘तपः स्वाध्याय ईश्वरप्रणिधान’’ को महर्षि पतंजलि ने क्रियायोग के नाम से उल्लेखित किया है। इस सूत्र को जीवन में धारण करने से मनुष्य अपन सांसारिक जीवन के सम्पूर्ण द्वन्द्वों से लड़ते हुए भी जीवन आध्यात्मिक उन्नŸिा के मार्ग के ऊपर तीव्रता से गमन कर सकता है। और सम्पूर्ण शारीरिक एवं मानसिक विकारों से मुक्त हो सकता है। DOI: https://doi.org/10.24321/2456.0510.202011}, issn = {2456-0510}, pages = {18--22}, url = {http://thejournalshouse.com/index.php/Anusandhan-Hindi-IntlJournal/article/view/160} }