आयुर्वेदिक चिकित्सा में धार्मिकता का महत्व: मन, वचन, और क्रिया का संतुलन

  • Pooja Pathak Student, Department of Hindi, Burbwan University, west bangal.

Abstract

आयुर्वेद में धार्मिकता का महत्वपूर्ण स्थान है और इसे मन, वचन, और क्रिया के संतुलन के परिप्रेक्ष्य में विचारा जाता है। मन को ध्यान और योग के माध्यम से शुद्ध करना, वचन के माध्यम से आत्मा को उत्कृष्टता की ओर ले जाना, और क्रिया के संतुलन के लिए सही आहार, विहार, और आचार्य का पालन करना, ये सभी आयुर्वेदिक चिकित्सा में धार्मिकता के माध्यम से संतुलित और स्वस्थ जीवन की दिशा में मदद करते हैं। धार्मिकता न केवल रोगों का उपचार करती है, बल्कि व्यक्ति को आध्यात्मिक और भौतिक स्वास्थ्य की पूर्णता की दिशा में एक संतुलित दृष्टिकोण प्रदान करती है। धार्मिकता आयुर्वेद में मानव जीवन को संपूर्णता की दिशा में मार्गदर्शन करती है, जिससे व्यक्ति अपने आत्मा के साथ अद्वितीयता में एक होता है। ध्यान और मंत्रचिकित्सा के माध्यम से मन को शांति और स्थिरता में रखकर आत्मा के साथ संबंध स्थापित करने का साधन होता है। वचन के माध्यम से आत्मा को उच्चतम स्थान तक पहुंचाने का प्रयास किया जाता है, और क्रिया के संतुलन से आचार्य, आहार, और विहार के माध्यम से शरीर को स्वस्थ और ऊर्जावान बनाए रखने का कारगर तरीका होता है। इस प्रकार, आयुर्वेद में धार्मिकता का पालन करने से मन, वचन, और क्रिया के संतुलन के साथ संपूर्ण स्वास्थ्य और आत्मा की ऊँचाई में समृद्धि होती है।

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Published
2023-12-20
How to Cite
PATHAK, Pooja. आयुर्वेदिक चिकित्सा में धार्मिकता का महत्व: मन, वचन, और क्रिया का संतुलन. Anusanadhan: A Multidisciplinary International Journal (In Hindi), [S.l.], v. 8, n. 3&4, p. 10-12, dec. 2023. ISSN 2456-0510. Available at: <http://thejournalshouse.com/index.php/Anusandhan-Hindi-IntlJournal/article/view/1227>. Date accessed: 04 mar. 2025.