श्रीरामचरितमानस में व्याप्त लोकमंगल की भावना
Abstract
जड़ चेतन जग जीव जत, सकल राममय जानि।
बंदउँ सबके पद कमल, सदा जोरि जुग पानि ।।1 (बालकाण्ड/ दोहा 7 ग)
देव, दनुज, नर, नाग, खग, प्रेत, पितर, गंधर्व।
बंदउँ किन्नर रजनिचर, कृपा करहँु अब सर्व।।2 (बालकाण्ड/ दोहा 7 घ)
आकर चारि लाख चौरासी। जाति जीव जल थल नभ वास4ी।
सीय राममय सब जग जानी। करउँ प्रणाम जोरि जुग पानी।।3 (बालकाण्ड/ दोहा 8/ चौपाई1,2)
राम चरित मानस तुलसी साहित्य का महाकाव्य है। इसे कलियुगीन सामवेद भी कहा जाता है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने मानस में लोकमंगल की कामना को सर्वोपरि रखा। लोकमंगल अर्थात जन सामान्य से जन विशेष तक। मंगल का अभिप्राय है शुभ हित चिंतन। तुलसीदास जी कहते हैं कि इस प्रकृति की संरचना में जड़-चेतन, स्थावर-जंगम सभी का कल्याण हो क्योंकि सभी में परमात्मा का अंश है। इसीलिए तुलसीदास जी चेतन की सभी योनियों, देव, दानव, मनुष्य, सर्प, पक्षी, प्रेत, पितर, गंधर्व, किन्नर एवं राक्षस सभी से प्रार्थना करते हैं कि उनकी इस मंगल-कामना में सभी उनकी सहायता करें। वे इस सृष्टि के जल-थल एवं गगनचारी चार लाख चौरासी योनियों में समाहित प्राणियों का कल्याण चाहते हैं। गोस्वामी जी की समत्व दृष्टि में सभी उनके ईष्ट के प्यारे हैं उन सभी की वे वन्दना करते हैं।