वर्तमान परिपेक्ष्य में महात्मा गांधी के समन्वयवादी दर्शन की प्रासंगिकता

  • Leena Jha Professor, Department of Yoga, Maharaja Agrasen Himalayan Garhwal University, Uttarakhand

Abstract

वर्तमान समय पूर्णतः भौतिकवादी हो गया है। लोग भौतिक समृद्धि और तकनीकी विकास के नाम पर पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों के व्यापक दोहन की होड़ में लगे हुए हैं। पर्यावरण एवं विश्व इस कारण विनाश के कगार पर पहुंच गया है। प्राचीन भारतीय समाज में आत्मसंयम, आत्मनिर्भरता, मानव रिश्तो एवं मानव मूल्य केंद्रित विकास को महत्व दिया जाता था।


वर्तमान समय में मशीनी एवं तकनीकी सभ्यता विचार विमर्श का एक महत्वपूर्ण आयाम बन गया है। तकनीकी विकास की अंधी दौड़ की सबसे दुखद त्रासदी मानवीय मूल्य से हाथ धोना है। आज के दौर में नैतिकता और आध्यात्मिकता का स्थान गौण हो गया है। आध्यात्मिकता एवं नैतिकता के अभाव में समाज दिशाहीन हो रहा है।


गांधीजी मुलतः मानव आदि थे। मानव कल्याण ही उनके जीवन का लक्ष्य था। वे समाज के विकास के लिए समन्वयवाद को आवश्यक मानते थे। जिस प्रकार परमहंस का जीवन धर्म के अभ्यास एवं अनुशीलन का जीवन है उसी प्रकार गांधी के जीवन दर्शन के संबंध में निसंकोच कहा जा सकता है कि उनका व्यवहार का जीवन है।


तुलसीदास एवं रामकृष्ण परमहंस की तरह महात्मा गांधी का दर्शन भी समन्वयवादी दर्शन का ही स्वरुप है। यद्यपि वे तकनीकी एवं शास्त्रीय अर्थ में दर्शन शास्त्री नहीं थे। फिर भी उनके जीवन एवं चिंतन से ऐसा स्पष्ट ज्ञात होता है कि दर्शन के विभिन्न क्षेत्रों में उनका महत्वपूर्ण योगदान है।" डॉ राधाकृष्णन इनकी महत्ता एवं योगदान की सराहना करते हुए उनकी उदारता एवं व्यापक दृष्टिकोण की प्रशंसा की है।"

References

1.राधा कृष्णन डॉ. एस. - अमर गांधी, भवन जर्नल, खंड - 42, संख्या 5, अक्टूबर, 15,1995, गांधी जयंती। 2, 1995, पृष्ठ-31
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13. डॉ राधाकृष्णन: भारत और विश्व, पृ०-103
Published
2024-04-23
How to Cite
JHA, Leena. वर्तमान परिपेक्ष्य में महात्मा गांधी के समन्वयवादी दर्शन की प्रासंगिकता. Anusanadhan: A Multidisciplinary International Journal (In Hindi), [S.l.], v. 9, n. 1&2, p. 8-11, apr. 2024. ISSN 2456-0510. Available at: <http://thejournalshouse.com/index.php/Anusandhan-Hindi-IntlJournal/article/view/1068>. Date accessed: 22 dec. 2024.