ज्योतिष एवं विज्ञान के क्षेत्र में शून्य (Zero) का महत्त्व
Abstract
शून्य को सबसे छोटी सकरात्मक संख्या माना जाता है। इसका अपना कोई मान नहीं हैं। शून्य वस्तुतः विश्व के लिए एक पहेली है। यहाँ वेदों में शून्य का प्रयोग तथा भारतीय शास्त्रों में शून्य के लिए प्रयुक्त शब्द का व्याख्या एवं विश्लेषण करने का प्रयास किया गया है। शून्यता एवं शून्यवाद को भारतीय दर्शन अनुसार प्रस्फुरित हुआ है। शून्य से सिफर(सिफ्र) एवं Zero तक का सम्बन्ध स्थापित करने का एक लघु प्रयास भी है। इसका स्वरूप परब्रह्म परमेश्वर की तरह सदा सर्वदा परिपूर्ण है। जैसे सृष्टि के प्रारम्भ और लय होने समय परब्रह्म परमेश्वर कोई विकार उत्पन्न नही होता है। उसी प्रकार शून्य में भी किसी राशि को समाविष्ट करने और निकाल देने से कोई अन्तर नहीं होता। वह परब्रह्म परमेश्वर की तरह पूर्ण ही रहता है। वही शून्य गणित (ज्योतिष),दर्शन, विज्ञान और व्याकरण आदि शास्त्रों में विविध नाम से जाना जाता है। दशमलव पद्धति के प्रयोग से कठिन से कठिन प्रश्न सरलता से सिद्ध हो सकता है। इसका प्रयोग सर्वतोगामी है।
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