प्राचीन भारत में रसायन
Abstract
इस शोध पत्र में लेखक ने प्राचीन भारत में रसायन विषय को प्रस्तुत किया है। इस शोध पत्र में लेखक ने चरक, कौटिल्य एवं नागार्जुन के रासायनिक कार्यों पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए उनके महत्व एवं उपयोगिता पर प्रकाश डाला है। लेखक ने प्रभावी ढंग से दर्शाया है कि कैसे इन प्राचीन भारतीय विद्वानों ने रसायन विज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी योगदान दिया। यह शोध पत्र यह बताता है कि कैसे इन प्राचीन भारतीय विद्वानों ने रासायनिक अनुसंधान और प्रयोग की नींव रखी, जिससे भविष्य के विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ।
References
1. चरक संहिता, द्वितीय भाग, रसायनाध्यायः १.७-८, पृ० ५
2. अथर्ववेद, ६.८०.३
3. वही, ७.८६.१
4. चरक संहिता द्वितीय भाग वही, १.७८-८०, पृ० २०
5. वही, पृ० २१
6. मिश्र डा० सिद्धिनन्दन, आयुर्वेदीय रसशास्त्र, पृ० १७
7. झा डा० चन्द्रभूषण, आयुर्वेदीय रसशास्त्र, पृ० २६
8. विद्यालंकार अत्रिदेव, आयुर्वेद का बृहत इतिहास ५० ३८१
9. वही, पृ० १२७
10. अनु० श्री भारतीय योग, कौटिल्य अर्थशास्त्र, पृ ५६०-७७२, गैरोला वाचस्पति, कौटिलिय अर्थशास्त्र, पृ० ६०३-६३४
11. डा. चन्द्रभूषण, आयुर्वेदीक रसशास्त्र, पृ० ११,१२
12. मिश्र डा० सिद्धिनन्दन, आयुर्वेदीक रशसास्त्र, पृ० ७
13. वही, पृ० ८, ६ "सिद्धेरसे करिष्यामि निर्दारिद्रयमिंद जगत्।"
14. अन्निदेव विद्यालंकार, आयुर्वेद का वृहत इतिहास पृ० ४०१-०२, झा डा० चन्द्रभूषण पूर्वोक्त, पृ० ४३- ४४
15. वही, किमत्र चित्रं यदि राजवर्त्तक शिरीषपुष्पाग्ररसेन भावितम् ।
सितं सुवर्ण तरूणार्क सन्निभं करोति गुंजाशतमेक गुंजया ।।
16. वही, किमत्रं चित्रं यदि पीत गन्धकः पलानिर्यासरसेन शोधितः ।
आरण्यकैरूत्पलकैस्तु पाचितः करोति तारं त्रिपुटेन कांचनम् ।।
17. वही, किमत्रं चित्रं दरदः सुभावितः पयेन मेष्या बहुशोऽम्लवर्गः ।
सितं सुवर्ण बहुधम्र्मभावितं करोति साक्षाद् बरकुंकुमप्रभम् ।।
18. वही
2. अथर्ववेद, ६.८०.३
3. वही, ७.८६.१
4. चरक संहिता द्वितीय भाग वही, १.७८-८०, पृ० २०
5. वही, पृ० २१
6. मिश्र डा० सिद्धिनन्दन, आयुर्वेदीय रसशास्त्र, पृ० १७
7. झा डा० चन्द्रभूषण, आयुर्वेदीय रसशास्त्र, पृ० २६
8. विद्यालंकार अत्रिदेव, आयुर्वेद का बृहत इतिहास ५० ३८१
9. वही, पृ० १२७
10. अनु० श्री भारतीय योग, कौटिल्य अर्थशास्त्र, पृ ५६०-७७२, गैरोला वाचस्पति, कौटिलिय अर्थशास्त्र, पृ० ६०३-६३४
11. डा. चन्द्रभूषण, आयुर्वेदीक रसशास्त्र, पृ० ११,१२
12. मिश्र डा० सिद्धिनन्दन, आयुर्वेदीक रशसास्त्र, पृ० ७
13. वही, पृ० ८, ६ "सिद्धेरसे करिष्यामि निर्दारिद्रयमिंद जगत्।"
14. अन्निदेव विद्यालंकार, आयुर्वेद का वृहत इतिहास पृ० ४०१-०२, झा डा० चन्द्रभूषण पूर्वोक्त, पृ० ४३- ४४
15. वही, किमत्र चित्रं यदि राजवर्त्तक शिरीषपुष्पाग्ररसेन भावितम् ।
सितं सुवर्ण तरूणार्क सन्निभं करोति गुंजाशतमेक गुंजया ।।
16. वही, किमत्रं चित्रं यदि पीत गन्धकः पलानिर्यासरसेन शोधितः ।
आरण्यकैरूत्पलकैस्तु पाचितः करोति तारं त्रिपुटेन कांचनम् ।।
17. वही, किमत्रं चित्रं दरदः सुभावितः पयेन मेष्या बहुशोऽम्लवर्गः ।
सितं सुवर्ण बहुधम्र्मभावितं करोति साक्षाद् बरकुंकुमप्रभम् ।।
18. वही
Published
2024-12-22
How to Cite
PANDEY, Rameshwar.
प्राचीन भारत में रसायन.
Anusanadhan: A Multidisciplinary International Journal (In Hindi), [S.l.], v. 9, n. 3&4, p. 28-33, dec. 2024.
ISSN 2456-0510.
Available at: <http://thejournalshouse.com/index.php/Anusandhan-Hindi-IntlJournal/article/view/1364>. Date accessed: 02 feb. 2025.
Section
Research Article