विद्यालयों में बढती छात्र अनुशासनहीनता एक जटिल समस्या
Abstract
किसी राष्ट्र के भावी निर्माता उसके बच्चे और किशोर बनते है। यें राष्ट्र की आशा के प्रतीक है। यें देश के भविष्य का भव्य भवन तभी बन पायेगे, जब इनकी नींव गहरी और सुदृढ होगी। विशाल प्रासाद, गगन चुंबी, अट्टालिकाॅए तथा भव्य भवन जितने मनमोहक तथा आकर्षक होते है, उतनी ही उनकी नींव गहरी होती है। रेत का महल गिर जाता है। मानव तभी भव्य प्रासाद के समान निर्मित हो सकता है यदि विद्यार्थी जीवन की नींव दृढ होगी। माली अपने कठोर परिश्रम से उपवन को सुन्दर फूलों से सजाता है और मनुष्य सुन्दर गुणो को अर्जित कर जीवन को सुखमय बनाता है। ये गुण विद्यार्थी जीवन मंे ही प्राप्त किये जा सकते है। छात्र जीवन में अनुशासन बहुत आवश्यक है। अनुशासनयुक्त वातावरण बच्चों के विकास के लिए नितांत आवश्यक है। बच्चों में अनुशासनहीनता उन्हे आलसी व कमजोर बना देती है। इससे उनका विकास धीरे होता है। क्योकि अनुशासनहीनता जीवन को पतन की ओर ले जाती है। अनुशासहीन विद्यार्थियों को शिक्षक कभी प्यार और सहयोग नही देते है। गुरूओं के प्रति अश्रद्वा रखकर वह कुमार्गगायी बनते है, अतः उसका जीवन समाज के लिए बोझ और अभिशाप बन जाता है। वर्तमान युग में इस प्रकार की स्थिति देखी जा रही है। एक बच्चे के लिये यह उचित नहीं है। अनुशासन में रहकर साधारण से साधारण बच्चा भी परिश्रमी, बुद्विमान और योग्य बन सकता है। समय का मूल्य भी उसे अनुशासन में रहकर समय पर अपने हर कार्य को करना सीखाता है। जिससे अपने समय की कद्र से वह जीवन में कभी परास्त नहीं होता है। विद्यार्थी जीवन क्योकि भविष्य निर्माण की आधार शिला होता है। अतः अनुशासन के माध्यम से जीवन को व्यवस्थित कर विद्यार्थियों को उज्जवल भविष्य की ओर बढाना चाहिए।
DOI: https://doi.org/10.24321/2456.0510.202006
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