साहित्यिक कृतियों के सन्दर्भ में अनुवाद
Abstract
भारत में अनुवाद की परम्परा प्राचीन काल से ही चली आ रही है। कहते हैं अनुवाद उतना ही प्राचीन जितनी कि भाषा। आज ‘अनुवाद’ शब्द हमारे लिए कोई नया शब्द नहीं है। विभिन्न भाषायी मंच पर, साहित्यिक पत्रिकाओं में, अखबारों में तथा रोजमर्रा के जीवन में हमें अक्सर ‘अनुवाद’ शब्द का प्रयोग देखने-सुनने को मिलता है। साधारणत: एक भाषा-पाठ में निहित अर्थ या संदेश को दूसरे भाषा-पाठ में यथावत् व्यक्त करना अर्थात् एक भाषा में कही गई बात को दूसरी भाषा में कहना अनुवाद है। परंतु यहतज कार्य उतना आसान नहीं, जितना कहने या सुनने में जान पड़ रहा है। दूसरा, अनुवाद सिद्धांत की चर्चा करना और व्यावहारिक अनुवाद करना-दो भिन्न प्रदेशों से गुजरने जैसा है, फिर भी इसमें कोई दो राय नहीं कि अनुवाद के सिद्धांत हमें अनुवाद कर्म की जटिलताओं से परिचित कराते हैं। फिर, किसी भी भाषा के साहित्य में और ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में जितना महत्त्व मूल लेखन का है, उससे कम महत्त्व अनुवाद का नहीं है। लेकिन सहज और संप्रेषणीय अनुवाद मूल लेखन से भी कठिन काम है। भारत जैसे बहुभाषी देश के लिए अनुवाद की समस्या और भी महत्त्वपूर्ण है। इसकी जटिलता को समझना अपने आप में बहुत बड़ी समस्या है।
DOI: https://doi.org/10.24321/2456.0510.202009
References
2.अनुवाद विज्ञान :सिद्धान्त एवं प्रविधि – भोलानाथ तिवारी
3. अनुवाद विज्ञान और सेप्रेषण – डॉ. हरी मोहन