रामधारी सिंह दिनकर की युग चेतना
Abstract
दिनकर वाद-विशेष की संकीर्ण सीमाओं से मुक्त अतिशय प्रबुद्ध और युगचेता कवि हैं। मानव-जीवन की चिरन्तन समस्याओं पर उनका चिन्तन बहुत मौलिक है। उनकी कविताओं में जनजागरण की विचारधारा और राष्ट्रीयता बड़े प्रभावी ढंग से अभिव्यक्त हुई है। दिनकर ओज और आवेग के कवि हैं। उन्होंने गॉधीवादी दर्शन के विपरीत क्रान्तिकारी विचारधारा को काव्यात्मक वाणी दी हैं। कवि ने ध्वंसक क्रान्ति का आह्वान नवनिर्माण हेतु ही किया है। ‘हुकंार’ में क्रान्ति-दूत दिनकर की ही हुंकार गूॅजी है। स्वतन्त्रता के उपरान्त भी दिनकर की राष्ट्रीयता और युग-चेतना क्षीण नहीं पड़ी। उन्होंने जनतन्त्र के निवासियों को निरन्तर उनके अधिकारों और कर्त्तव्यों के प्रति सचेत किया। ‘रश्मिरथी में उन्होंने कर्ण के माध्यम से जाति-प्रथा के स्थान पर उज्ज्वल चरित्र को श्रेष्ठ माना है। दिनकर कला को कला के लिए मानकर जीवन के लिए मानते हैं। इसलिए कला-क्षेत्र की दृष्टि से उन्होंने काव्य-शास्त्रीय परम्पराओं को छोड़कर युग के अनुरूप हदयग्राही काव्य की रचना की है।
DOI: https://doi.org/10.24321/2456.0510.202103
References
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