ब्रिटिश अल्मोड़ा में कृषि तथा वन प्रशासन (1815.1947 ई0)

  • भारती बिष्ट

Abstract

यद्यपि अंग्रेजों ने अल्मोड़ा जनपद में कृषि उपज में वृद्धि करके कृषि व्यवस्था को सुदृढ़ बनाया लेकिन तब भी कृषि बढ़ती हुई आबादी की आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर सकी क्योंकि बीसवीं शताब्दी के तीसरे दशक से इस जनपद की जनसंख्या में तेजी से वृद्धि होने लगी थी। इसके अतिरिक्त कृषि के क्षेत्र में अधिक वृद्धि न होने का एक कारण यह भी था कि दुर्भिक्ष के वर्षों को छोड़कर यहाँ जमीन में सुधार एवं कृषि के विकास हेतु कोई कर्ज अथवा अग्रिम नहीं दिये गये। अतः प्रतिव्यक्ति दर के औसत से कृषि में काफी गिरावट आयी। पर्वतीय लोगों के आर्थिक जीवन से वनों का महत्वपूर्ण सम्बन्ध रहा है। वनों से उन्हें ईधन हेतु सस्ती लकड़ी, पत्तियाँ चारा, मकानों एवं कृषि औजारों के लिए सस्ती लकड़ी प्राप्त हो जाती थी, गोरखों के शासनकाल में यहाँ के जंगलों को काफी नुकसान पहुँचाया गया क्योंकि गोरखा प्राकृतिक सुरक्षा से बहुत प्रभावित थे। अतः उन्होंने आक्रमण में बाधक पहाड़ों की चोटियों के समस्त पेड़ों को कटवा दिया था। लेकिन वनों की सुरक्षा के क्षेत्र में अंग्रेज प्रशासक काफी निपुण थे। उनके द्वारा स्थानीय लोगों की वन सम्बन्धी आवश्यकताओं तथा सुरक्षा के लिये पर्याप्त प्रयास किये गये। वन बहुमूल्य राष्ट्रीय सम्पदा बन गये थे, अतः उन्हें चारागाह अथवा खुले रूप से प्रयोग करने हेतु नहीं छोड़ा जा सकता था, लेकिन वनों की सुरक्षा हेतु ब्रिटिश प्रशासकों के लिये यह आवश्यक था कि वे यहाँ की जनता के सदियों से चले आ रहे अधिकारों में अतिक्रमण न करते, क्योंकि जीवन यापन के लिये पूरी तरह प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर अर्थव्यवस्था के लिये यह सर्वथा प्रतिकूल कदम था। ब्रिटिश प्रशासकों को चाहिए था कि वे यहाँ की ग्रामीण जनता को वनों के महत्व के विषय में समझाते लेकिन वे ऐसा करने में असमर्थ रहे।

Published
2021-06-30
How to Cite
बिष्ट, भारती. ब्रिटिश अल्मोड़ा में कृषि तथा वन प्रशासन (1815.1947 ई0). Anusanadhan: A Multidisciplinary International Journal (In Hindi), [S.l.], v. 6, n. 1&2, p. 5-16, june 2021. ISSN 2456-0510. Available at: <http://thejournalshouse.com/index.php/Anusandhan-Hindi-IntlJournal/article/view/689>. Date accessed: 22 dec. 2024.